हुक्मरानों..,! सिर्फ_रैली, नारे और शपथ से नहीं रुकेगा नशा...?"
शिवपुरी में ‘‘नशे से दूरी है जरूरी’’ अभियान शुरू हुआ। रैली निकली, नारे लगे - “नशा छोड़ो, जीवन जोड़ो”, “स्वस्थ युवा, सशक्त भारत”... और बच्चों के हाथों में तख्तियां देखकर लगा मानो कोई बदलाव बस आने ही वाला है। लेकिन ज़रा ठहरिए... क्या यह बदलाव वाकई इन नारों और रैलियों से आएगा? क्या वाकई स्मैक, ब्राउन शुगर और चरस जैसी ज़हर बन चुकी नशे की सामग्री शहर के कोनों से गायब हो जाएगी? अफसोस, इसका जवाब है – "नहीं!"
क्योंकि रैली के अगले ही दिन वही खाकी वर्दी वाले सिपाही अगर उन्हीं गलियों में आंख मूंदकर खड़े मिलते हैं, जहाँ नशा खुलेआम बेचा जाता है, तो फिर इन अभियानों का क्या मतलब? जब तक खाकी वर्दी खुद भीतर से संकल्पित नहीं होगी, जब तक प्रशासन सख्ती से हर नशे के सौदागर की कमर नहीं तोड़ेगा, तब तक ये अभियान केवल दिखावा हैं, औपचारिकता हैं, मीडिया के फ्रेम भर हैं।
हकीकत तो ये है कि नशा रोकना हो तो सिर्फ स्कूल के बच्चों को नशे के खिलाफ तख्तियां थमाने से नहीं चलेगा... न ही "मैं शपथ लेता हूँ..." कह देने से कुछ बदलेगा। बदलाव तब आएगा जब पुलिस चौकसी नहीं, शिकारी जैसी घात लगाकर हर नशा बेचने वाले को कानून के शिकंजे में कसेगी।
पुलिस चाहे तो एक पाउच भी न बिके, पर जब सड़कों पर नशा खुलेआम बिकता है और थानेदार की आंखें मूंद जाती हैं, तो फिर नशा नहीं, व्यवस्था की नीयत ही संदिग्ध लगती है।
जागरूकता जरूरी है, लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है दृढ़ इच्छाशक्ति ,उस खाकी वर्दी की, जो चाहे तो पूरे शहर को नशे से मुक्त कर सकती है। सख्ती से निगरानी रखी जाए, छोटे-मोटे नशेड़ियों पर नहीं, बल्कि उनकी जड़ पर वार किया जाए, जो इस ज़हर को शहर की नसों में घोल रहे हैं।
इसलिए हुक्मरानों,अगली बार सिर्फ रैली नहीं, एक्शन दिखाइए... नारे नहीं, तफ्तीश कीजिए... और शपथ नहीं, ठोस कार्रवाई कीजिए।वरना"नशा नाश की जड़"यह स्लोगन बड़ा खूबसूरत लगता है और "नशा स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है"यह सिगरेट,तम्बाकू की पेकिंग पर भी लिखा रहता है।साहेब,नशे की भयावहता देखना है तो उन घरों में देखिये जिनमे कोई इसका आदी हो चुका है।
सुनो न..! नशा सिर्फ बच्चों को शपथ दिलाकर नहीं रुकेगा, वो रुकेगा जब खाकी मन ही मन ठान ले – "बस,अब और नहीं...!"
✍️बृजेश सिंह तोमर