श्रद्धा और भक्ति की पराकाष्ठा से ही शक्ति प्राप्त होती है- वासुदेव नंदिनी भार्गव।
सेसई सड़क (कोलारस) मैं रैया सरकार पर मानस रस प्रवाह के पंचम दिन पंडित सुश्री बासुदेवनंदिनी जी भार्गव ने श्री राम के दिव्य विवाह उत्सव के प्रसंग को सुनाते हुए कहा की जब धनुष नहीं टूटा तो जनक जी बोले " तज़हु आस निज निज ग्रह जाऊ" हे राजाओं सब आस छोड़ छोड़ के अपने घर जाओ।
इस पर आध्यात्मिक भाव प्रकट करते हुए उन्होंने कहा की जानकी जी भक्ति स्वरूपा है और भक्ति तभी प्राप्त होती हैं जब हम सभी प्रकार की आशा निराशा को त्याग दे। यही भक्ति का लक्षण है किसी से कोई आशा न हो यहां तक की भगवान से भी कोई कार्य के पूर्ण करने की आशा न रहे। यह भक्ति की पराकाष्ठा है।