"संवाद नहीं अब संघर्ष होगा, कश्मीर से लेकर पाकिस्तान तक… नारद जयंती पर राष्ट्र चिंतकों ने दी चेतावनी"।
नारद जयंती के शुभ अवसर पर 13 मई 2025 की शाम ‘क्रांतिदूत’ और ‘भारत संस्कृति न्यास’ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ऑनलाइन संगोष्ठी एक ऐतिहासिक वैचारिक आयोजन के रूप में सम्पन्न हुई। इस कार्यक्रम ने न केवल श्रोताओं के मन को उद्वेलित किया, बल्कि वर्तमान भारत के धर्म, संस्कृति और राष्ट्रनीति को लेकर एक नई चेतना का संचार भी किया। संगोष्ठी में शामिल देश के प्रतिष्ठित विचारकों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब केवल संवाद नहीं, बल्कि आवश्यक होने पर संघर्ष ही धर्म बन जाता है। नारद मुनि की संवाद परंपरा को स्मरण करते हुए वक्ताओं ने बताया कि संवाद ही सनातन की आत्मा है, लेकिन जब संवाद निष्फल हो जाए तो संघर्ष ही अंतिम उपाय रह जाता है।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता नितिन शुक्ला, जो एक प्रसिद्ध राष्ट्रवादी विचारक, राजनीतिक विश्लेषक और सोशल मीडिया पर व्यापक प्रभाव रखने वाले वक्ता हैं, उन्होंने अपने उद्बोधन में भारत की सीमाओं से लेकर विचार की सीमा तक विस्तार किया। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान जैसे असफल और आतंकी राष्ट्रों को अब भारत की ओर से स्पष्ट चेतावनी मिलनी चाहिए कि हमारी सहिष्णुता को हमारी कमजोरी न समझा जाए। सनातन धर्म अब स्पष्टीकरण नहीं देगा। अब धर्म को स्पष्ट, सशक्त और साहसी स्वरूप में प्रस्तुत करना होगा।” उनकी बातें युवाओं के बीच एक नई राष्ट्रधर्म चेतना का संचार करती दिखीं।
विशिष्ट वक्ता संजय तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार, चिंतक और ‘भारत संस्कृति न्यास’ के संयोजक, जिन्होंने वर्षों तक भारत की सांस्कृतिक अस्मिता और विशेषकर कश्मीर विषय पर अध्ययन किया है, उन्होंने कहा – “कश्मीर केवल एक राजनीतिक विवाद नहीं, वह भारत की आत्मा है। वहां की ऋषि परंपरा, तपोवन और संस्कृति को हमने विस्मृत कर दिया, जो एक बड़ी चूक है। जब तक कश्मीर में आदिकालीन संस्कृति को फिर से प्रतिष्ठा नहीं मिलती, तब तक भारत का सांस्कृतिक पुनर्जागरण अधूरा है।”
मुख्य अतिथि विजय मान, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक रह चुके हैं और भारत-तिब्बत समन्वय संघ के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री भी रहे हैं, उन्होंने संवाद की सनातन परंपरा पर गहराई से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा – “ऋषि नारद संवाद के केवल वाहक नहीं थे, वे विचारों के पुल निर्माता थे। आज के समय में जब समाज खंडित हो रहा है, तब नारद जैसे संवादकर्ताओं की सबसे अधिक आवश्यकता है। संवाद केवल बोलने का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्रनिर्माण की नींव है।”
विशेष अतिथि कपिल देव मिश्र, जो सामाजिक और राजनीतिक संगठनों में सक्रिय भूमिका निभाते हुए युवाओं के प्रेरणास्रोत बन चुके हैं, उन्होंने विषय को एक निर्णायक मोड़ दिया। उनका कहना था – “जब संवाद निष्फल हो जाए और सत्य के मार्ग पर अवरोध उत्पन्न होने लगे, तब संघर्ष ही धर्म हो जाता है। आज का समय केवल शांति की बातें करने का नहीं, बल्कि सत्य के लिए खड़े होने का है – चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो। युवाओं को अब स्पष्ट पक्ष लेना होगा – या तो धर्म के साथ या उसके विरोध में।”
कार्यक्रम का भावनात्मक और सशक्त संचालन गीतिका ने किया, जिन्होंने अपने विशिष्ट काव्यात्मक अंदाज़ और गंभीर प्रस्तुति से इस पूरे आयोजन को एक जीवंत वैचारिक यात्रा में बदल दिया।
संगोष्ठी के संवाद सूत्रधार हरिहर निवास शर्मा रहे, जो विश्व संवाद केंद्र भोपाल के पूर्व निदेशक रह चुके हैं और वर्तमान में एक वरिष्ठ राष्ट्रवादी विचारक के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने विषय प्रवेश से लेकर विचार समन्वय और समापन तक संगोष्ठी को वैचारिक संतुलन और गंभीरता प्रदान की।
यह संगोष्ठी यूट्यूब के ‘क्रांतिदूत’ चैनल पर सजीव प्रसारित की गई, जिसे बड़ी संख्या में दर्शकों ने देखा और सराहा। लाइव कमेंट्स में देशभर से जुड़े लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दीं और आयोजन को ऐतिहासिक करार दिया।
यह कार्यक्रम मात्र एक आयोजन नहीं था, बल्कि एक वैचारिक उद्घोषणा थी – जिसमें ऋषियों के वाणी से संवाद निकला और उसे धर्मभूमि पर प्रतिष्ठित संघर्ष का मार्गदर्शन मिला। नारद जयंती की यह संगोष्ठी सनातन चेतना को पुनः जनचेतना के केंद्र में लाने का एक सफल प्रयास सिद्ध हुई – एक ऐसी शुरुआत, जो आने वाले समय में विचार और संघर्ष दोनों के लिए नई दिशा तय करेगी।