सहरिया क्रांति स्थापना दिवस पर शिवपुरी में आदिवासी चेतना का ज्वार,।
हजारों ने निकाली रैली, राष्ट्रपति के नाम सौंपा ज्ञापन।
सहरिया क्रांति के स्थापना दिवस पर आदिवासी अस्मिता का विस्फोट: शिवपुरी में गूंजा ‘सहरिया क्रांति जिंदाबाद’।
शिवपुरी में आज का दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया जब सहरिया क्रांति सामाजिक आंदोलन के स्थापना दिवस पर हजारों की संख्या में सहरिया आदिवासियों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। जिले के कोने-कोने से आए पुरुष, महिलाएं, युवा और बुजुर्गों ने जब "सहरिया क्रांति जिंदाबाद" के नारे लगाए तो पूरा शहर जनशक्ति की गर्जना से गूंज उठा। यह केवल एक आयोजन नहीं था, बल्कि शोषण, दमन और उपेक्षा के खिलाफ एक आदिवासी चेतना का तीव्र उद्घोष था।
कार्यक्रम की शुरुआत सहरिया क्रांति संयोजक संजय बेचैन के निवास पर हुई, जहां सैकड़ों आदिवासियों ने एकत्र होकर पहले क्रांतिकारी साथी अनिल आदिवासी के दिवंगत पुत्र के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। यह क्षण भावनाओं से भरा और सघन श्रद्धा से ओतप्रोत था। इसके बाद जैसे ही मंच से उद्घोषणा हुई, भीड़ ने एक स्वर में ‘जय सहरिया’, ‘हक़ नहीं देंगे तो छीन लेंगे’ और ‘संविधान वाला अधिकार चाहिए’ जैसे नारों से माहौल को आंदोलित कर दिया।
कार्यक्रम में बतौर अतिथि पहुँचे पूर्व मंत्री केपी सिंह ने सहरिया क्रांति के आंदोलन को जनजागरण की मिसाल बताते हुए संगठन के सभी कार्यकर्ताओं को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा, "जब तक समाज के अंतिम व्यक्ति को न्याय नहीं मिलेगा, तब तक यह लड़ाई जारी रहनी चाहिए। सहरिया समाज की चेतना अब कुंद नहीं, तेज धार वाली तलवार बन चुकी है।"
प्रदेश अध्यक्ष औतार भाई ने भरी हुंकार: "अब नवयुग लाएँगे"
सहरिया क्रांति के प्रदेश अध्यक्ष औतार भाई सहरिया ने मंच से हुंकार भरते हुए कहा कि सहरिया समाज अब जाग चुका है और यह आंदोलन अब रुकने वाला नहीं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि "हमने संकल्प लिया है कि अब नवयुग लाएँगे, जिसमें हमारा समाज न केवल जीवित रहेगा, बल्कि सम्मानपूर्वक जीवन जिएगा।" उन्होंने सहरिया क्रांति के 18 सूत्रीय मांगपत्र को विस्तार से जनता के समक्ष रखा और कहा कि यदि शासन-प्रशासन ने हमारी पीड़ा नहीं सुनी, तो यह आंदोलन गांव-गांव, शहर-शहर तक फैलेगा।
जिला मुख्यालय पर निकली रैली, राष्ट्रपति के नाम सौंपा ज्ञापन
कार्यक्रम के पश्चात हजारों आदिवासियों की रैली शहर की सड़कों पर निकली। डीजे की गूंज, ढोल-नगाड़ों की ताल और कंधों पर झंडे लिए युवा कार्यकर्ताओं की टोली—यह रैली जनसैलाब के साथ एक जनक्रांति का दृश्य पेश कर रही थी। रैली माधव चौक, कोर्ट रोड, गुरुद्वारा चौराहा, गांधी चौक होते हुए जिला कलेक्टर कार्यालय पहुँची, जहाँ राष्ट्रपति भारत सरकार के नाम एक मांगपत्र सौंपा गया।
ज्ञापन में 18 जमीनी मांगें उठाईं गईं, जिनमें प्रमुख हैं:जिनमे 10 साल के अंदर जीतने भी जिला कलेकातर या आयुक्त ने आदिवासियों के विक्री से वर्जित ज़मीनों की विक्रय की अनुमति दी है उसे निरस्त कर पुनर जांच की जाये व आदिवासियों की जमीन उन्हे वापस लौटाई जावे। अन्य मांगों मे
पुश्तैनी जमीन की वापसी: दबंगों द्वारा कब्जाई गई जमीन को मुक्त कराया जाए।
भ्रष्टाचार पर अंकुश: सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार की जांच।
राशन और पोषण का अधिकार: नियमित वितरण और गुणवत्ता सुनिश्चित हो।
बेरोजगारी का समाधान: युवाओं के लिए रोजगार और प्रशिक्षण कार्यक्रम।
महिला सुरक्षा: उत्पीड़न और अपराधों पर कठोर कार्रवाई।
शराबबंदी: बस्तियों में अवैध शराब की बिक्री पर पूर्ण रोक।
स्वास्थ्य, शिक्षा और आधारभूत सुविधाएँ: सहरिया बस्तियों में प्राथमिक सुविधाओं की बहाली।
ज्ञापन में यह भी उल्लेख किया गया कि सहरिया समाज की स्थिति आज भी गुलामी जैसी है, जहाँ न्याय, सम्मान और समानता केवल संविधान के पन्नों में सीमित है। रैली के समापन पर संजय बेचैन ने कहा कि यह आंदोलन किसी एक व्यक्ति या संस्था का नहीं, बल्कि पूरे सहरिया समाज की आत्मा की पुकार है।
महिलाओं की भागीदारी ने दिखाई चेतना की नई दिशा
इस आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी विशेष रूप से उल्लेखनीय रही। कई सहरिया महिलाएं अपने बच्चों के साथ रैली में शामिल हुईं और अपनी आवाज को बुलंद किया। एक महिला प्रतिभागी माया सहरिया ने कहा, "सरकार कहती है कि हम जनजातियों को अधिकार दे रहे हैं, लेकिन हमारे गांव में न राशन है, न पानी और न ही इलाज। क्या यही अधिकार है?"
राजनीतिक दलों और संगठनों की व्यापक भागीदारी
स्थानीय सामाजिक संगठनों, वकीलों, शिक्षकों और जनप्रतिनिधियों ने भी रैली में सहभागिता की। कांग्रेस, समाज संगठनों दलों और कुछ निर्दलीय जनप्रतिनिधियों ने इस आंदोलन को समर्थन देते हुए कहा कि सहरिया समाज की आवाज को अब दरकिनार नहीं किया जा सकता। कुछ संगठनों ने तो यह भी मांग रखी कि सहरिया क्रांति जैसे जन आंदोलनों को राष्ट्रीय आंदोलन का दर्जा मिलना चाहिए।
प्रशासन सतर्क, लेकिन शांतिपूर्ण रहा प्रदर्शन
पूरे कार्यक्रम और रैली को देखते हुए प्रशासन ने व्यापक पुलिस बंदोबस्त किए थे। जगह-जगह पुलिस बल की तैनाती थी, लेकिन प्रदर्शन पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा। किसी भी प्रकार की अप्रिय स्थिति नहीं बनी। कलेक्टर कार्यालय के बाहर रैली ने अनुशासित ढंग से अपनी मांगें रखीं और सभी कार्यकर्ताओं ने संविधान की मर्यादा का सम्मान करते हुए लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात रखी।
कार्यक्रम के अंत में संजय बेचैन ने मीडिया को संबोधित करते हुए स्पष्ट कहा कि "यह सिर्फ स्थापना दिवस नहीं, एक सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत है। सहरिया समाज अब भीख नहीं, हक चाहता है। और यह हक हम लेकर रहेंगे।" उन्होंने आने वाले समय में इस आंदोलन को अन्य जिलों और प्रदेशों तक फैलाने की बात भी कही।
आज का दिन शिवपुरी में आदिवासी चेतना की गर्जना का प्रतीक बना। सहरिया क्रांति का यह स्थापना दिवस केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक अलख है जो आने वाले समय में आदिवासी अधिकारों की लड़ाई को निर्णायक मोड़ देगा। यह सैलाब एक संदेश है—अब आदिवासी चुप नहीं रहेगा, अब वह जाग चुका है और बदलाव की इबारत खुद लिखेगा।