शिवपुरी : केंद्रीय मंत्री के हस्तक्षेप के बाद भी अँधेरे में कांकर पंचायत का रुदियापुरा गांव, ग्रामीण भूख हड़ताल की चेतावनी पर अड़े।

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केंद्रीय मंत्री के हस्तक्षेप के बाद भी अँधेरे में कांकर पंचायत का रुदियापुरा गांव, ग्रामीण भूख हड़ताल की चेतावनी पर अड़े।

शिवपुरी। शिवपुरी जिले की कांकर पंचायत के रुदियापुरा गांव में करीब 50 घरों में बिजली की समस्या अभी भी बनी हुई है, जिससे ग्रामीण गंभीर रूप से परेशान हैं। यह समस्या तब और भी चौंकाने वाली हो जाती है, जब पता चलता है कि खुद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए समाधान के लिए पत्र लिखा था। ग्रामीणों को मिली पत्र की प्रति के बावजूद, जमीनी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है, जिससे सरकारी तंत्र की घोर लापरवाही उजागर हुई है।

तीन दशकों से अंधेरे में जीवन

रुदियापुरा गांव के निवासी पवन परिहार ने बताया कि वे पिछले 30 सालों से बिजली की इस गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। बार-बार स्थानीय अधिकारियों और विभागों से शिकायत करने के बावजूद, उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं निकला। उनका कहना है कि इस उपेक्षा ने उन्हें निराशा के गर्त में धकेल दिया है।

मंत्री का पत्र भी बेअसर

ग्रामीणों ने थक-हारकर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से गुहार लगाई थी। मंत्री ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए श्योपुर कलेक्टर को एक पत्र लिखकर समस्या का तत्काल समाधान करने के निर्देश दिए थे। ग्रामीणों को इस पत्र की एक प्रति भी मिली थी, जिससे उन्हें उम्मीद की एक किरण दिखी थी। लेकिन, यह उम्मीद भी जल्द ही टूट गई, क्योंकि मंत्री के निर्देश के बाद भी बिजली विभाग और स्थानीय प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

अब भूख हड़ताल की चेतावनी

प्रशासन की इस निष्क्रियता से तंग आकर, रुदियापुरा के ग्रामीण एक बार फिर कलेक्ट्रेट जनसुनवाई में अपनी शिकायत लेकर पहुंचे। उन्होंने साफ चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ तो वे भूख हड़ताल पर चले जाएंगे।

यह घटना दर्शाती है कि कैसे सरकारी तंत्र में संवादहीनता और जवाबदेही की कमी है। जब एक केंद्रीय मंत्री के सीधे निर्देश का भी कोई असर नहीं होता, तो आम नागरिकों की शिकायतों का क्या हाल होता होगा, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। यह स्थिति न केवल ग्रामीणों को हताश कर रही है, बल्कि शासन-प्रशासन के प्रति उनके विश्वास को भी कमजोर कर रही है। अब देखना यह है कि ग्रामीणों की भूख हड़ताल की चेतावनी के बाद प्रशासन नींद से जागता है या उन्हें और अधिक संघर्ष के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

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