" दिल बड़ा रखो, छोटा तो सभी रखते है" : मणिका शर्मा

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👉 आज के समय में यूं तो मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जिसके अंदर विभिन्न प्रकार की भावनाएं उत्पन्न होती हैं।

👉लेकिन आज के परिदृश्य में यह भावना मोह, माया प्यार, लालच, ईर्ष्या में सिमट कर रह गई है। 

👉जहाँ देखो वहाँ केवल होड़ है। पद की लड़ाई, मोह की लड़ाई, पैसों की लड़ाई, नाम की लड़ाई। हर तरह बस ईर्ष्या ही देखने को मिल रही है।

👉एक घर में रहने वाले सगे नहीं, रक्त के सम्बंध तक इस लालच ईर्ष्या में टूटकर बिखरने लगे है।

👉साथ काम कर रहा कर्मचारी हो या अधिकारी केवल नाम बनाने और पैसा कमाने की होड़ सब बर्बाद के रही है। एक दूसरे के जानी दुश्मन बने बैठे है यहाँ सब।

👉जगह जगह धर्म के नाम पर भी केवल दंगा और आपसी बैर है।

👉 क्या मरने के उपरांत यह घर साथ लेकर जायेगा, क्या परिवार का एक भी सदस्य साथ आएगा.।

👉 क्या जिसका घर, पैसा, पद देख तेरी दिल में एक टीस है। उसके साथ भी क्या मरने उपरांत बदला लेने साथ जायेगा या खुद के साथ उसे ले जायेगा।

👉👉 अमूमन देखा गया है की लोग मेरे मुँह और कुछ और मेरे पीठ पीछे इसी गुणा भाग में लगे है की आखिर यह इंसान होकर खड़ा क्यों है। क्यों नहीं इसे किसी के सहारे की जरूरत। यह आगे बड़ा तो बढ़ क्यों रहा है।

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👉गर्व है मुझे की मैं ऐसा भाव नहीं रखती । मुझे जन्म एक मिला है जहाँ मुझे भी आँखों से हमेशा के लिए ओझल होने से दुनियां की कोई ताकत नहीं रोक सकती।

👉लेकिन जब तक जीउ बस सबके काम आ सकूँ यही मेरा धर्म यही मेरी जात यही "मणिका" है।

👉कहते है काशी में मणिकर्णीका घाट पर निरंतर रोशनी रहती है वहाँ नश्वर होने से जन्म मृत्यु के फेर से आत्मा की मुक्ति है।

गौरतलब है की मेरा नाम मणिका है और मेरा जन्म मुझे मेरे शरीर के साथ मेरी भवनाओ में भी सुनने महसूस करने हेतू भगवान ने कर्ण निर्मित किये है जो जब तक जीवित हूँ तब तक हर किसी हर धर्म हर जाति यहाँ तक की हर जानवर की भावनाओं को सुन और समझ सकती हूँ।

👉 बस यही मेरा जीवन है यही मेरी सफलता की कहानी, क्यूंकि एक दिन मैं नहीं रहूंगी लेकिन मेरे नाम मेरी आवाज मेरे व्यक्तित्व की "गूँज" जगह जगह किस्सों कहानियों में गूँजयमान होगी जरुर।

✍️मणिका की कलम 

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2टिप्पणियाँ
  1. अति उत्तम विचार । इतनी अच्छी सोच वाले आज के समय में बहुत कम मिलते हैं ।

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